आर्ट्स फैकल्टी

आर्ट्स फैकल्टी

Title: आर्ट्स फैकल्टी
Author: Ashish Kumar
Release: 2021-07-20
Kind: ebook
Genre: Fiction & Literature, Books
Size: 550115
मानविकी शब्द आपने सुना है? अगर सुना है, तो आप किस्मत वाले हैं। अंग्रेजों ने एक समय कई उद्योग लगाए। उनमें से एक बड़ा उद्योग था शिक्षा का। जहाँ लोगों को इतना ज्ञान दिया जाता कि लोग नौकर की नौकरी कर सके। उनका मूल उद्देश्य विवेक विकसित करना नहीं था। समय के साथ ये उद्योग फला फूला और इसने हमें आज तीन स्ट्रीम दिए साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स। साइंस और कॉमर्स तो बाजारवाद के स्तंभ पर खड़ा रहा पर आर्ट्स जिसे 'मानविकी' या 'कला' कहते है। यह विषय आज विलुप्त होने के कगार पर है। इसपर न ध्यान दिया जाता है और न ही जरूरी समझा जाता है। इसे केवल यूपीएससी नामक परीक्षा ने बचाए रखा है। वरना ये तो कब का गुजर गया होता। आर्ट्स ऐसा विषय है जहाँ आपका जाना खतरे की निशानी है। यहाँ आपको समाज के ताने (आर्ट्स लिया है? आर्ट्स क्यों? कुछ नहीं किया बस बीए लिए बैठा है?) सुनने को मिल जाएंगे। समाज का निर्माण करने वाले विषय को खुद का अस्तित्व बचना मुश्किल हो गया। इस विषय ने आज तक प्लेसमेंट का नाम नहीं सुना। बुद्धिजीवियों का मानना है कि विषय आर्ट्स है तो प्लेसमेंट तो उसकी कला पर निर्भर करता है। इस विषय में बड़ी जिल्लत है भई। अगर आप इसमें हारे तो पूरी जिम्मेदारी आपकी। लेकिन इस विषय को कई पागल ने लिया और बिना प्लेसमेंट के निभाया। और वो कहलाये कलाकार। ये कहानी कलाकारों की आर्ट्स वालों की है।

आर्ट्स फैकल्टी की कहानी उन्हीं किरदारों की देन है। जिन्हें हम सालों से जानते है। जब हम बच्चे होते है तो हमारे अंदर गजब का जोश रहता है। बैठे बैठे ही कह देते है कि अगर हम नेता बने तो बिजली, पानी, भ्रष्टाचार की समस्या से मुक्त कर देंगें। ये करेंगें वो बनेंगें। फिर हम बड़े होते है। और हमारे अंदर का भूत उतर जाता है। हम इसी दुनिया के गुलाम बन जाते है। जहाँ रास्ते मंजिल कोई दूसरा तय करता है। बस आपको बेवकूफ बनाया जाता है कि जो कुछ आप कर रहें है वो आपकी पसंद है। लेकिन ये पसंद कभी आपकी थी ही नहीं। वह तो आपको अब तक नहीं पता। बचपन की गहराईयों में कभी झाँक कर देखिएगा तो आपको आपकी मंजिल मिल जाएगी।

बस इतना ही। अब ये कहानी आपकी….

आशीष कुमार

9 जून 2021

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