Title | : | Geetawali (Hindi) |
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Author | : | Tulsidas |
Release | : | 2014-11-19 |
Kind | : | ebook |
Genre | : | Hinduism, Books, Religion & Spirituality |
Size | : | 250245 |
आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई | रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई || अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार-जोग-समुदाई | हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई || बरषहिं बिबुध-निकर कुसुमावलि, नभ दुन्दुभी बजाई | कौसल्यादि मातु मन हरषित, यह सुख बरनि न जाई || सुनि दसरथ सुत-जनम लिये सब गुरुजन बिप्र बोलाई | बेद-बिहित करि क्रिया परम सुचि, आनँद उर न समाई || सदन बेद-धुनि करत मधुर मुनि, बहु बिधि बाज बधाई | पुरबासिन्ह प्रिय-नाथ-हेतु निज-निज सम्पदा लुटाई || मनि-तोरन, बहु केतुपताकनि, पुरी रुचिर करि छाई | मागध-सूत द्वार बन्दीजन जहँ तहँ करत बड़ाई || सहज सिङ्गार किये बनिता चलीं मङ्गल बिपुल बनाई | गावहिं देहिं असीस मुदित, चिर जिवौ तनय सुखदाई || बीथिन्ह कुङ्कम-कीच, अरगजा अगर अबीर उड़ाई | नाचहिं पुर-नर-नारि प्रेम भरि देहदसा बिसराई || अमित धेनु-गज-तुरग-बसन-मनि, जातरुप अधिकाई | देत भूप अनुरुप जाहि जोइ, सकल सिद्धि गृह आई || सुखी भए सुर-सन्त-भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई | सबै सुमन बिकसत रबि निकसत, कुमुद-बिपिन बिलखाई || जो सुखसिन्धु-सकृत-सीकर तें सिव-बिरञ्चि-प्रभुताई | सोइ सुख अवध उमँगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहौं गाई || जे रघुबीर-चरन-चिन्तक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई | अबिरल अमल अनुप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई || |